उद्योगों से विकास या विनाश

प्रस्तुतकर्ता व्‍यंग्‍य-बाण Monday, April 25, 2011 , ,

कितना औद्योगिकरण जरूरी है ?


उद्योगों की चिमनियों से निकलता काला-सफेद धुआं, सरकारी जमीनों पर कब्जा करती राख, कम होती कृषि भूमि और जनता का विरोध, इन उद्योगों के लगने से देश, प्रदेश, शहर, गांव का विकास होगा, या फिर लोगों के हिस्से में आएगा धूल, धुआं और राख, बढ़ेगा तापमान, तो गर्मी से कैसे निजात पाएंगे लोग, धान का कटोरा बन जाएगा का राख का कटोरा, इसलिए ऐसे औद्योगीकरण के पहले ग्लोब वार्मिंग पर विचार करना भी जरूरी है। पर्यावरण के सौदागर भूल चुके हैं कि जो हम प्रकृति को देंगे, उसके बदले में हमें भी वैसा फल मिलेगा।
जिले में विद्युत संयंत्र लगाने के लिए सरकार ने उद्योगपतियों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। 34 पावर प्लांट लगाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने देश भर की नामी कंपनियों केएसके महानदी, वीडियोकान, मोजरबेयर, डी. बी. पावर, कर्नाटका पावर, श्याम सेंचुरी आदि से एमओयू हस्ताक्षरित किए हैं। 70 प्रतिशत से अधिक सिंचाई और कृषि प्रधान जिले में इतनी बड़ी संख्या में पावर प्लांट लगाए जाने से होने वाले नुकसान की फिक्र यहां की आम जनता को ही नहीं, जनप्रतिनिधियों को सता रही है। उद्योगों के लिए जमीन अधिग्रहण से जिले की कृषि भूमि का रकबा लगातार कम होता जा रहा है। पावर प्लांट प्रबंधन, जमीन दलालों, अधिकारियों और नेताओं की चौकड़ी की कुटिल रणनीति में फंसकर किसान अपनी दो फसली जमीन बेच रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में उद्योगों के लिए अनुमति दिए जाने के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं, जैसे कि इन उद्योगों के लिए पानी कहां से आएगा, उद्योगों से निकलने वाले धुएं से लोगों के स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ेगा, तापमान बढ़ेगा, भारी वाहनों के आवागमन से दुर्घटनाएं बढ़ेंगी और सबसे अहम् सवाल है कि इन उद्योगों से निकलने वाली राख आखिर कहां जाएगी ?
जिले की तस्वीर भले ही औद्योगिक विकास से सुधर जाए लेकिन तकदीर आने वाले दिनों में बिलकुल भी अच्छी नहीं होगी। 70 प्रतिशत से अधिक खेती के लिए सिंचित जांजगीर-चांपा जिले के लिए सरकार ने 34 से अधिक पावर प्लांट के लिए एमओयू किया है। जिसके बाद आम जनता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। जनसुनवाई में उद्योगों के खिलाफ जनता का आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। आम जनता के अलावा जनप्रतिनिधि भी सरकार के इस कदम से खुश नहीं हैं। लेकिन वे सरकार का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं।
सरकारी जमीनों पर उद्योगों से निकलती राख फेंकी जा रही है, उद्योग प्रबंधनों की मनमानी इतनी बढ़ गई है कि बिना अनुमति लिए ही नेशनल हाईवे के किनारे, नालों में और सरकारी भूमि पर राख फेंकी जा रही है। इस मामले में प्रशासन तो जैसे उद्योगों की हाथों की कठपुतली बन गया है। जिस तरह जांजगीर-चांपा जिले में पावर प्लांट लगाए जा रहे हैं, वह उचित नहीं है, आने वाले दिनों में इससे कई तरह के नुकसान होंगे, लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, उद्योगों में नौकरी नहीं मिलने पर पलायन होगा और कृषि भूमि भी कम होती जाएगी। सबसे बड़ी समस्या होगी तापमान की, प्रदेश में सबसे ज्यादा तापमान इसी जिले मंे होता है, उद्योग लगने के बाद गर्मी बढ़ेगी तो लोगों का जीना हराम हो जाएगा। कोरबा में उद्योग लगने के पहले वहां का तापमान 5 डिग्री कम था, आज जाकर वहां की स्थिति देख सकते हैं।
जिले में अब तक पांच बड़े उद्योग स्थापित हैं और 7 उद्योगों के लिए जनसुनवाई हो चुकी है। स्थापित हो चुके उद्योगों से आसपास के इलाके के ग्रामीण खासे परेशान हैं, चिमनियों से निकलता काला धुआं लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। ग्रामीणों ने प्रशासन के अधिकारियों के सामने इसकी शिकायत भी की है, लेकिन उद्योगों के हाथों की कठपुतली बन चुके अधिकारी इस मामले पर कोई पहल नहीं करते। प्रदूषण रोकने के लिए उद्योगों में लगाए गए ईएसपी संयंत्र बिजली बिल बचाने के चक्कर में बंद रखे जाते हैं, जिसकी वजह से धुआं आसपास के पंद्रह किलोमीटर क्षेत्र को प्रभावित करता है। उद्योग नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, ग्रीन बेल्ट की स्थापना नहीं की जा रही है, जिससे लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। विधायकों द्वारा विधानसभा में भी यह मुद्दा उठाया गया है। लेकिन सरकार र्प्यावरण और प्रदूषण पर गंभीर नहीं है।
कुल मिलाकर इतने सारे उद्योगों के पक्ष में न तो आम जनता है और न ही अधिकतर जनप्रतिनिधि, फिर भी कृषि प्रधान जिले में इतने अधिक उद्योग लगाए जाने के नुकसान के बारे में सोचा नहीं जा रहा है। उद्योगों के बढ़़ने से जिले का विकास तो होगा, लेकिन इनसे निकलने वाली राख, धूल, धुआं और गर्मी आम जनता के हिस्से में ही आएगा, आने वाले दिनों में धान का कटोरा कहलाने वाला यह जिला और प्रदेश राख के कटोरे में तब्दील हो जाएगा। यह समझने की जरूरत है कि ऐसे औद्योगिकरण से जिले का विकास होगा या विनाश ? ग्लोबल वार्मिंग को लेकर पूरे विश्व में चिंता की जा रही है। लेकिन औद्योगिक प्रदूषण पर सरकारें लगाम नहीं लगा पा रही हैं। प्रकृति को दिए जा रहे जख्मों का बदला समय समय पर मानव समाज को मिल रहा है। जापान में हुई तबाही इसका ज्वलंत उदाहरण है। प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले भविष्य में क्या इसके विध्वंस से जनजीवन को बचा पाएंगे ? सिकंदर जब इस दुनिया से गया था तो उसके दोनों हाथ कफन के बाहर निकाले गए थे ताकि दुनिया को सबक मिल सके कि जो दुनिया से जाता है वह अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता। इस पाठ को वे लोग भूल चुके हैं, जिन्हें हर काम में लक्ष्मी प्राप्ति अहम् लगती है। क्या ऐसे लोग अपने साथ कफन में छुपाकर कुछ ले जा पाएंगे ?

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दैनिक छत्‍तीसगढ में ब्‍यूरो चीफ जिला जांजगीर-चांपा
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