देश में करोड़ों बेरोजगार तमाम डिग्रियां लिए नौकरी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं, पर चिपकू भाई को नौकरी मिल गई, जिसके लिए न तो डिग्री की जरूरत थी और न ही सिफारिश की, ऐसी नौकरी की उसके घरवाले क्या, बाप-दादे भी उम्मीद नहीं रखते थे। शानो-शौकत बढ़ गई, हाथों में चमचमाती सोने-हीरे की अंगूठी, महंगे जूते, सूट-बूट, टाई उस पर खूब फबने लगी थी। इस महोदय का परिचय तो जरा जान लें, आपके आसपास ही मिल जाएगा, इसे चमचा कहते हैं, चमचा यानि जिसके बिना खाने का एक निवाला भी मुंह के अंदर न जाए, जिसके बिना नेता पानी भी न पी सके। ऐसी ही नौकरी चिपकू भाई ने जुगाड़ कर ली थी। अफसरों पर रौब कि उनका ट्रांसफर करा देंगे, छुटभैयों पर रंग जमाना कि उन्हें फलां मोहल्ले के वार्ड पार्षद की टिकट दिला देंगे, बेरोजगारों के तो वे मसीहा बन गए थे, जहां से भी गुजरते नौकरी पाने की चाह में भटक रहे बेरोजगार नब्बे अंश के कोण की मुद्रा बनाकर सलाम करते थे। ऐसी किस्मत तो आज की तारीख में किसी राजे-महाराजे की भी नहीं हो सकती थी।
देश में करोड़ों बेरोजगार तमाम डिग्रियां लिए नौकरी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं, पर चिपकू भाई को नौकरी मिल गई, जिसके लिए न तो डिग्री की जरूरत थी और न ही सिफारिश की, ऐसी नौकरी की उसके घरवाले क्या, बाप-दादे भी उम्मीद नहीं रखते थे। शानो-शौकत बढ़ गई, हाथों में चमचमाती सोने-हीरे की अंगूठी, महंगे जूते, सूट-बूट, टाई उस पर खूब फबने लगी थी। इस महोदय का परिचय तो जरा जान लें, आपके आसपास ही मिल जाएगा, इसे चमचा कहते हैं, चमचा यानि जिसके बिना खाने का एक निवाला भी मुंह के अंदर न जाए, जिसके बिना नेता पानी भी न पी सके। ऐसी ही नौकरी चिपकू भाई ने जुगाड़ कर ली थी। अफसरों पर रौब कि उनका ट्रांसफर करा देंगे, छुटभैयों पर रंग जमाना कि उन्हें फलां मोहल्ले के वार्ड पार्षद की टिकट दिला देंगे, बेरोजगारों के तो वे मसीहा बन गए थे, जहां से भी गुजरते नौकरी पाने की चाह में भटक रहे बेरोजगार नब्बे अंश के कोण की मुद्रा बनाकर सलाम करते थे। ऐसी किस्मत तो आज की तारीख में किसी राजे-महाराजे की भी नहीं हो सकती थी।खबर एक्सप्रेस आपको कैसा लगा ?
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