व्यंग्य - अथ श्री कांदादेवः कथा

प्रस्तुतकर्ता व्‍यंग्‍य-बाण Tuesday, January 18, 2011

कांदादेव अर्थात प्याज देवता, मराठी मानुष बोले तो कांदा और छत्तीसगढ़िया में गोंदली, अँगरेजी में ओनियन, सिंधी बोली में बसर वगैरह-वगैरह। रोज-रोज कांदादेव संबंधी लेख, व्यंग्य, कविता, कहानी, गजल, मुहावरे सुन-सुन के इसकी महिमा से मैं भी नहीं बच पाया। इकलौती पत्नी ने भी ताना मार ही दिया कि बड़े कलमकार बने फिरते हो, पर प्याज देवता के बारे में लिख नहीं सकते। चलो अच्छा ही हुआ कि इसके दर्शन कई-कई दिन बाद हो रहे हैं, नहीं तो बिना मतलब के ये कांदादेव हमारे आंखों में आंसू ला देते थे, अब कुछ दिनों तक छुटकारा तो मिला। मैने कहा-अरी भागवान, प्याज महाराज भी अब देवतातुल्य हो गए हैं। क्योंकि गरीब तो इसे खरीद नहीं सकता और अमीर इसे अपने किचन में सजा कर रख रहे हैं। इससे भी बड़ी खासियत है प्याज की महानता की, जो सरकारों को हिला देता है, सरकारों को गिरा देता है, वह विपक्षी पार्टियों के लिए भी देवता है और सत्तासीन सरकार के लिए भी। जो कांदादेव किचन में नारी को बिना किसी कारण अश्रुपूर्ण कर देता है, उसकी महिमा अब अपने देश से निकलकर विदेश तक पहुंच गई है। अब वही कांदादेव महाराज चाईना से यहां, हमारे अखण्ड भरतखण्डेः देश में पधारने लग गए हैं अर्थात सिंग इज किंग की सरकार हिंदी-चीनी भाई-भाई को चरितार्थ करने लग गई है। जब एक भाई संकट में हो तो दूसरे भाई को उसकी मदद करनी ही चाहिए, यही धर्म है और इसी धर्म के पालन में अब चीन भी लग गया है। वैसे भी चाईना मोबाईल अधिकतर युवा हाथों में पहुंच ही चुका है, बच्चों को चाईनीज ट्वायज यानि खिलौने तो लुभा ही रहे हैं। चाउमीन अब होटलों, रेस्तरां से आगे बढ़कर गांव के ठेलों में भी पहुंच गया है, जिसके स्वाद से गांव के भोले-भाले टेटकू, समारू, मंटोरा भी अब अछूते नहीं रहे, बालीवुड के अक्की भैया यानि अक्षय कुमार भी चांदनी चौक टू चायना तक धूम मचा ही चुके हैं। तो अब हम कौन होते हैं चाईना की महिमा से इंकार करने वाले। हमें भी चाईना ओनियन यानि चीनी प्याज को स्वीकार, अंगीकार करना ही पड़ेगा। चीनी प्रधानमंत्री जिआबाओ और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हाथ मिलाने से आगे अब गले मिलने और दिल मिलाने को भी तैयार हैं। सुना है कि 11 टन चाईनीज कांदादेव महाराज हमारे देश में पधार चुके हैं। मेरी षुभकामना है कि यह 1100 नहीं, 11 करोड़ टन तक पहुंचें और हम जैसे कलमघिस्सूओं तक इसकी खुशबू आ सके। मैं तो अब यह भी सोचने लगा हूं कि चाईनीज भाईयों ने हमारे कान, मुंह, पेट तक पहुंच बना ही ली है, अगर नामकरण संस्कार पर कब्जा कर लिया तो फिर आने वाले समय में बच्चों के नाम झुंग, वांगड़ू, साओ, पाओ, तिन सूक रखने पड़ जाएंगे। जय हो चाईनीज की, जय हो जिआबाओ की और जय हो मनमोहन सिंह की। अथ श्री कांदादेवः कथा समाप्त।

2 टिप्पणियाँ

  1. Rahul Singh Says:
  2. 'प्‍याज-स्‍पर्श' लेखनी मुबारक.

     
  3. वाह बढिया व्यंग्य है।

    आभार

     

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दैनिक छत्‍तीसगढ में ब्‍यूरो चीफ जिला जांजगीर-चांपा
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