पंचम सुर के मसीहाई संगीतकार

प्रस्तुतकर्ता व्‍यंग्‍य-बाण Saturday, June 25, 2011 , ,


स्व. राहुल देव बर्मन, संगीतकार
जन्मतिथि- 27 जून 1939

जिसके रोने से पंचम सुर निकलता था और पारंपरिक वाद्य यंत्रों से हटकर नए प्रयोगों का केमिकल लोचा जिनके दिमाग में भरा हुआ था। सुमधुर संगीत की रचना में जिनका कोई सानी आज भी नहीं है, संगीत की ऐसी मसीहाई शख्सियत शायद ही दोबारा इस नश्वर संसार में जन्म लेगी। नाम था आर. डी. यानि राहुल देव बर्मन यानि पंचम दा, मां-पिता ने तो उसका नाम राहुल ही रखा था, लेकिन हीरे की पहचान जौहरी ही कर सकता था, अभिनय के क्षेत्र की जानी-मानी शख्सियत दादा मुनि अशोक कुमार ने उनकी असल पहचान की और उन्हें पंचम का उपनाम दिया। उनका कहना था कि रोते वक्त उनके गले से सरगम का पांचवा सुर ‘प‘ निकलता था।
विश्व के श्रेष्ठतम संगीतकारों में से एक और भारतीय संगीत के लिए अलग ही मुकाम बनाने़ वाले राहुल का जन्म 27 जून 1939 में हुआ था। पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं। कलकत्ता में बंगाली परिवार में पैदा हुए राहुल देव के संगीत का चरम 70 के दशक में पूरे यौवन पर था और संगीतकार पिता सचिन देव बर्मन के सानिध्य में वाद्य यंत्रों की समझ और उनका प्रयोग करने की ललक पैदा हुई, उस्ताद अकबर अली खां से उन्होंने सरोद बजाने की तालीम ली। उन्होंने कंघी, कांच के गिलास, टेबल, झाड़ू का प्रयोग करके सुमधुर संगीत की रचना कर डाली। आशा भोंसले और रफी साहब का गाया यादगार गीत ‘‘चुरा लिया है तुमने जो दिल को‘‘जब भी बजता है, तो आर डी के अनूठे प्रयोगों की याद ताजा हो जाती है। पंचम दा को माउथ आर्गन बजाने का बहुत शौक था, देवानंद अभिनीत फिल्म सोलहवां साल के गीत ‘है अपना दिल तो आवारा‘ में उन्हें आर्गन बजाने का मौका मिला तथा ‘दोस्ती‘ फिल्म के यादगार गीतों में संगीत संयोजन कर रहे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए आर डी ने माउथ आर्गन बजाया।
पिता एस. डी. बर्मन की संगीत रचनाओं में सहयोगी के रूप में कैरियर की शुरूआत करते हुए राहुल ने सन् 1957 में गुरूदत्त की फिल्म प्यासा तथा 1958 में गांगुली बंधु यानि अशोक, किशोर व अनूप कुमार अभिनीत ‘चलती का नाम गाड़ी‘ से अपने सफर की शुरूआत की। उसके बाद सन् 1961 में स्वतंत्र रूप से महमूद की फिल्म ‘छोटे नवाब‘ में राहुल ने संगीत दिया। इसके बावजूद वे अपने पिता के संगीत संयोजन में सहयोगी बने रहे। एस. डी. की अंतिम फिल्म आराधना थी, जिसके संगीत को राहुल ने पूरा किया।
पाश्चात्य संगीत का प्रयोग भी भारतीय फिल्मों में उन्होंने ही किया और दम मारो दम, दुनिया में लोगों को, ओ हसीना जुल्फों वाली, दोस्तों से प्यार किया जैसे गीतों पर युवाओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। 70 के दशक में किशोर कुमार की गायकी, राजेश खन्ना के अभिनय और राहुल देव बर्मन के सुमधुर संगीत ने तो जैसे धूम ही मचा दी थी। कहा जाता है कि राजेश खन्ना के कैरियर को उंचाई तक मुकाम देने में पंचम दा के संगीत का बहुत बड़ा हाथ था। शम्मी कपूर अभिनीत तीसरी मंजिल फिल्म में संगीत देने के लिए जब नासिर हुसैन ने राहुल देव बर्मन को चुना, तो शम्मी नाखुश थे, वे शंकर-जयकिशन को बतौर संगीतकार लिए जाने की सिफारिश करते रहे। पर जब तीसरी मंजिल में मोहम्मद रफी तथा आशा भोंसले के गीतों ने देश भर में धूम मचाई, तब शम्मी को अहसास हुआ पंचम दा की अनोखी प्रतिभा का। उनके जीवन का अहम् मुकाम ‘पड़ोसन फिल्म के साथ भी जुड़ा हुआ है। हास्य रस से भरपूर इस फिल्म के गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं, खास कर ‘मेरे सामने वाली खिड़की में‘। जितना दम उनके पाश्चात्य संगीत से सजे गीतों में होता था, उतनी ही कशिश और गंभीरता गुलजार के गीतों पर दी गए धुनों में भी होती थी। आंधी, किनारा, खूशबू, परिचय, इजाजत जैसी फिल्मों का संगीत अलग ही अहसास दिलाता है।

उनका विवाह 1966 में रीता पटेल से हुआ लेकिन मनमौजी आरडी उनसे 5 साल में ही अलग हो गए और सुरों की मलिका आशा भोंसले से 1980 में शादी कर ली। पंचम दा ने आशा ताई के साथ कई गाने भी गाए। 2 फिल्मों अभिनय व 18 फिल्मों में गाने गाने वाले गुणी संगीतकार पंचम दा के कैरियर में आर्थिक तंगी भी आड़े आती रही, पर वे पूरी तन्मयता के साथ संगीत के क्षेत्र में डटे रहे। शोले, यादों की बारात, खेल खेल में, महबूबा, आपकी कसम, किनारा, कारवां, मासूम, बेताब, सागर जैसी फिल्मों में संगीत देकर कई पुरूस्कार जीते और भारतीय संगीत के मसीहा के रूप में स्थापित हो गए। अपने जीवन का अंतिम संगीत उन्होंने फिल्म 1942-ए लव स्टोरी के लिए दिया और फिल्म रिलीज होने से पहले ही वे 4 जनवरी 1994 को दुनिया छोड़ गए। मौसिकी के ऐसे अभूतपूर्व मसीहा राहुल देव बर्मन को मेरा शत् शत् नमन्।

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दैनिक छत्‍तीसगढ में ब्‍यूरो चीफ जिला जांजगीर-चांपा
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