देश में हर तरफ अण्णा राग की धूम है। फेसबुक अण्णा हजारे की खबरों से भरी पड़ी है, मोबाईल में संदेश आ रहे हैं उनके आंदोलन को समर्थन देने के लिए। ब्लाग पर भी अण्णा की ही बातें पढ़ने को मिल रही हैं। हालात कुछ उसी तरह के बन गए हैं जैसे तमाम भ्रष्ट मंत्रियों, संतरियों की लाइलाज बीमारी का तोड़ एक अनार (अन्ना) ही हो। कोई सत्याग्रही बापू से उनकी तुलना कर रहा है, कोई उन्हें जेपी जैसा क्रांतिकारी बता रहा है। उनके एक उपवास, आमरण अनशन पर अब तक महाराष्ट्र सरकार सकते में आ जाती थी, इस बार उन्होंने केंद्र सरकार को हिला कर रख दिया है। अण्णा जैसे साफ-सुथरे व्यक्त्वि अकेले ही पूरे देश की सरकार का पसीना निकाल सकते हैं। यह बात लोगों को अब महसूस हो रही है। अण्णा हजारे के बारे में ज्यादा कुछ कहना गुस्ताखी होगी। लेकिन उनके आंदोलन का जो हाल है, उसमें एक बात तो जुड़ी हुई दिखती है कि लोग भेड़ों के रेवड़ की तरह उनके पीछे हो लिए हैं। भ्रष्टाचार ने इस कदर लोगों के मन मष्तिष्क को अवसादग्रस्त कर दिया है कि लोग चाहे-अनचाहे ही इस अभियान में जुड़ते जा रहे हैं यह सोचे बिना ही कि उसके पारित होने से किस तरह के फायदे आम जनता को होंगे, नुकसान किस रूप में होगा या फिर सीवीसी की तरह बिना नाखूनों, दांतों का शेर खोखली गुर्राहट के दम पर भ्रष्टों को डराएगा ?
भ्रष्टाचार के कड़वी कहानियां, पढ़ पढ़ के लोग यह मान चुके हैं कि देश का लोकतंत्र भ्रष्टाचारियों के काले कारनामों से खुद को बीमार महसूस कर रहा है। राजनीति की धमनियों में कैंसर की तरह बस चुके भ्रष्टाचार की कैमो-थेरेपी होनी चाहिए। इस बात के समर्थन में हर खास, आम आदमी का सिर हामी भरने को तैयार बैठा है। क्योंकि यह सिर अब भ्रष्टाचारियों की करनी का फल अपने सिर पर लादे हुए परेशान है। देश की छाती पर मंूग दल रहे भ्रष्टाचारियों को न तो सुप्रीम कोर्ट की परवाह है और न ही उस आम जनता की, जिनके सामने, कुर्सी पाने के लिए पांच साल में एकाध बार गिड़गिड़ाते हुए वोट मांगने के लिए ऐसे लोगों को खड़ा होना पड़ता है। अण्णा को समर्थन देने के लिए हजारों नहीं, लाखों लोग उठ खड़े हुए हैं। बाबा रामदेव ने भी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। विदेशों में जमा काले धन के खुलासे और उसे वापस लाने की मांग की थी। लेकिन केंद्र की सत्ता पर काबिज यूपीए गठबंधन की सरकार दलीलें देकर इससे बचने की कोशिश करती रही। सुप्रीम कोर्ट की कई फटकारों के बाद ले देकर कुछ लोगों के नाम उजागर किए गए। उसके बाद जब बाबा रामदेव पर आरोप लगने लगे तो उनकी मुहिम सुस्त पड़ गई। दरअसल भ्रष्टाचार की परत देश और समाज में इतनी गहरी पैठ बना चुकी है कि उसे उखाड़ना आम आदमी के बस में नहीं रह गया है। एक मामूली से अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार सिध्द होने के बावजूद वर्षों तक कार्रवाई नहीं हो पाती और उसे बचाने के लिए पूरा सरकारी कुनबा लग जाता है। ऐसे में जनता के खून पसीने की कमाई पर डाका डालने वालों, हजारों करोड़ के घोटाले, महाघोटाले करने वालों पर कार्रवाई के लिए निष्पक्ष, हौसलामंद और ईमानदार जनप्रतिनिधि चाहिए। जनता ने बाबा रामदेव को योगगुरू के रूप में देखा, सराहा और उन्हें उनकी उम्मीद से अधिक मान सम्मान भी दिया, लेकिन राजनीति से जुड़ने के उनके फैसलों को जनता पचा नहीं पा रही है। सवाल यह है कि जब आप किसी पर आरोप लगाते हैं भ्रष्ट व्यवस्था, नेता, अफसर को पानी पी पीकर गालियां देते हैं, उसके भ्रष्टाचार पर कसमसाते हैं, तो इस बात की फिक्र भी होनी चाहिए कि हम खुद कितने साफ सुथरे और ईमानदार हैं ? खुद की भ्रष्टता पर हमें न शर्म आती है न ही नैतिकता की याद आती है। यही कारण है कि देश में गांधी एक ही हो सके और अब उनके सत्याग्रही तरीकों को गांधीगिरी का नाम दिया जा चुका है। अण्णा में भी लोग बापू का अक्स देखते हैं। इसकी वजह है उनकी सादगी, सिध्दांत, बेबाकपन और समाज विकास की सोच। आजादी के 64 वर्षों बाद देश को एक और सत्याग्रह की जरूरत आन पड़ी है। सादगी भरी यह जंग तब अंग्रेजों के खिलाफ और अब देश को खोखला कर रहे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ। नासिक के पास रालेगन सिध्दी नामक आदर्श गांव बनाने वाले अण्णा को अब पूरे देश की खरपतवार नष्ट करने का जुनून हो गया है। अण्णा के इस कदम से हिली सरकारों, भ्रष्ट नेताओं को तनिक भी शर्म आएगी ? भ्रष्टाचार की कहानियां सुन सुनकर देश का आम तबका इतना बीमार हो गया है कि अब उसे अण्णा हजारे एक अनार की तरह दिख रहे हैं, जो इस नासूर को ठीक करने में कारगर साबित हो सकते हैं।
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