

लेकिन अहम् सवाल तो यह भी है कि क्या चमत्कार का दावा सिर्फ अकेले निर्मल बाबा ही कर रहे हैं या अन्य माध्यमों से भी लोगों को झांसा दिया जा रहा है। कुछ अखबारों में लघु विज्ञापन प्रकाशित किए जा रहे हैं कि वशीकरण से मनचाही प्रेमिका पाएं, मनचाही नौकरी पाएं, संतान पाएं, जीवन की हर समस्या दूर करें, क्या यह अंधविश्वास नहीं है ? टीवी चैनलों पर लक्ष्मी कवच, कुबेर यंत्र, शनिकृपा यंत्र, नजर रक्षा कवच आदि यंत्रों-तंत्रों को जोर शोर से प्रचारित किया जाता है, तो ऐसे यंत्रों तंत्रों की क्या प्रमाणिकता है, क्या ऐसे चमत्कार का दावा अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है, वशीकरण से किसी को अपना बनाने की विधि अपराध नहीं है ?
दरअसल भारतभूमि ऋषियों-तपस्वियों, महामानवों, संतों की भूमि रही है। लोगों में आस्था को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशीलता है। बिना जाने-सुने अंधभक्ति और कुतर्क करने वालों को कोई कैसे समझा सकता है कि वर्षों पूर्व लिखे गए रामायण, गीता, बाईबिल, कुरान, वेद-शास्त्र, ग्रंथों में यह बात स्पष्ट है कि जितना कुछ आदमी को अपने जीवन में मिलता है, वह उसका मन ही निर्धारित करता है, आदमी के अंदर अदृष्य रूप से विद्यमान मन ही हमें हर समस्या, खुशी, सफलता, असफलता से सामना कराता है। चैनलों पर प्रसारित किए जा रहे भक्ति कार्यक्रमों में से कुछ में यह बातें बताई ही जाती हैं कि कर्म, मेहनत, अच्छी नियत, लगन और सब्र ही आदमी को जीवन में सफलता देता है, ऊंचाईयां देता है, शांति देता है, प्रसिध्दि देता है। सफलता के मापदंड तय हैं, इसका पालन करने से ही आदमी जीवन को सार्थक बना सकता है। कोई यंत्र-कोई तंत्र, कोई अन्य तरह के गंडे-ताबीज तब तक आदमी को सफल नहीं बना सकते, जब तक उसके अंदर सफल होने की नियत और जज्बा न हो। अगर कोई चमत्कार आदमी को सफलता दिला सकता है तो वह है मन की शक्ति। दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें। इंसान अपने मन को पहले जीते, फिर तो वह दुनिया को जीत लेगा ही। एक और बात जो मुझे खटकती है वो है मीडिया की जिम्मेदारी की। अब निर्मल बाबा प्रकरण में ही देखिए, इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका पर लोग तरह-तरह की बातें बना रहे हैं, कोई कहता है कि बाबा ने फलां चैनल को विज्ञापन नहीं दिया, इसलिए उसके खिलाफ यह सब शुरू हो गया है। आज वही चैनल बाबा प्रकरण में विरोध जताने के लिए उठ खड़े हुए हैं। लाखों रूपए लेकर ऐसे कार्यक्रम प्रसारित करने से पहले क्या चैनलों में बैठे जिम्मेदार लोगों को सोचना नहीं चाहिए कि वे किस तरह का प्रोग्राम पेश करने जा रहे हैं, उससे दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर कैसा प्रभाव-कुप्रभाव पड़ सकता है। सिर्फ एक लाईन लिख देने से जिम्मेदारी खत्म हो जाती है कि
ऐसे यंत्र-तंत्र खरीदने में अपने विवेक का उपयोग करें, क्या मीडिया में बैठे लोगों का कोई विवेक नहीं, कोई जवाबदारी नहीं। प्रोडक्ट बेचना बाजारवाद की एक प्रक्रिया है, लेकिन पढ़ने से ज्यादा श्राव्य और उससे ज्यादा दृष्य का प्रभाव मन मस्तिष्क पर पड़ता है। लोग सफलता के लिए शार्टकट चाहते हैं, क्योंकि इस दौर में हर कोई व्यस्त है, किसी के पास
समय नहीं है। काम क्या है, मालूम नहीं, लेकिन व्यस्त हैं ! ऐसे दौर में जब एक बाबा के खिलाफ अंधविश्वास का आरोप खड़ा हुआ है, तो बाकी फैले अंधविश्वासों को बढ़ावा देना गलत नहीं है ?
टाईटैनिक हादसे के सौ बरस - 1912-2012
0 मिस एनी सी. फंक का बलिदान
0 जांजगीर के मिशन कम्पाउंड में एनी की यादें आज भी बसी हैं



अपने जीवन की परवाह न कर दूसरों की फिक्र करने वाली एनी की यादें जांजगीर के मिशन कम्पाउंड में बसी हुई हैं। यहां खंडहर होते भवन के बाहरी हिस्से में मिस एनी क्लेमर फंक के नाम का शिलालेख लगा हुआ है। उनकी मौत के बाद यहां एनी सी. फंक मेमोरियल स्कूल सन् 1960 तक संचालित होता रहा। उसके बाद रखरखाव के अभाव में भवन खंडहर में तब्दील होता गया और स्कूल बंद हो गया। खंडहर की दरो-दीवारें भले ही दिन ब दिन टूटकर बिखरकर मिट्टी के आगोश में समा जाएंगी, लेकिन अविस्मरणीय खूबियों वाले टाईटैनिक के साथ-साथ, एनी के त्याग और बलिदान की इतिहास के पन्नों में दर्ज कहानी आसानी से नहीं भुलाई जा सकेगी।
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टाईटैनिक से जुड़ी खास बातें -
0 टाईटैनिक का निर्माण लंदन की व्हाईट स्टार लाईन कंपनी ने कराया था।
0 टाईटैनिक का वजन 52310 टन, कुल लंबाई 882 फीट 9 इंच, ऊंचाई 175 फुट थी।
0 चालक दल व यात्रियों सहित टाईटैनिक की क्षमता 3547 लोगों की थी और जीवनरक्षक नौकाएं 20 थी, जो 1178 यात्रियों की सुरक्षा में उपयोग की जा सकती थीं।
0 टाईटैनिक पर स्वीमिंग पूल, लिफ्ट, जिम, कैफे, पुस्तकालय, सैलून सहित तमाम सुविधाएं मौजूद थीं।
0 31 मार्च 1912 को टाईटैनिक पूरी तरह बनकर तैयार हुआ था और पहली यात्रा 10 अप्रेल को शुरू की, 15 अप्रेल की सुबह उसकी पहली यात्रा, अंतिम यात्रा साबित हुई।
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