17 जून का इतिहास यानि दो प्रसिध्द नारियों पर चर्चा का दिन, इसलिए कि आज ही के दिन एक ने जंग के मैदान में अपनी मर्दानगी दिखाकर अंग्रेजों के हौसले पस्त कर दिए और मातृभूमि पर कुर्बान हो गई। दूसरी पर किस्मत ही इतनी ज्यादा मेहरबान थी कि उसकी मौत के बाद उसके मजार पर दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत गढ़ी गई। जिसे लोग प्रेम का अनूठा प्रतीक मानते हैं। पर इनमें एक समानता है कि वे दोनों ही मातृत्व सुख नहीं पा सकीं।
पहली नारी मनु यानि खूब लड़ी मर्दानी, झांसी वाली रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा आती है, तो नारियों के रौद्र रूप का प्रतिनिधित्व करती हाथ में तलवार लेकर अंग्रेजों को ललकारती तस्वीर आंखों के सामने आ जाती है। वाराणसी के भदैनी में 19 नवंबर 1828 को मोरोपंत तांबे के घर जन्मी मणिकर्णिका उर्फ मनु का बचपन ही संघर्षों से शुरू हुआ, 4 वर्ष की उम्र में उसकी मां दुनिया छोड़ गए।
पिता मोरोपंत की लाडली छबीली ने कम उम्र में ही अस्त्र शस्त्र थाम लिए, और मराठा सम्राट पेशवा बाजीराव के राज्य की अपनी प्रतिभा के बल पर अलग पहचान बनाई।
सन् 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव निवालकर से परिणय के बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। 1851 में एक बेटे को जन्म दिया, लेकिन वह भी चार महीने बाद काल कवलित हो गया। गंगाधर राव का स्वास्थ्य भी खराब रहता था, उन्होंने दामोदर राव को दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया और एक दिन वह भी छोड़ गए दुनिया को। उसके बाद झांसी का राजकाज रानी लक्ष्मीबाई ने सम्हाला। अंग्रेज हिन्दुस्तान को अपनी हड़प नीति के तहत् कब्जाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और खजाने पर कब्जा कर लिया। लेकिन फौलादी इरादों से लबरेज लक्ष्मीबाई आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं की फौज भी तैयार की। तात्या टोपे के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए और 17 जून 1858 को अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त रानी घायल हो गई तथा ग्वालियर में दम तोड़ दिया। इतिहास के पन्नों में दर्ज रानी लक्ष्मीबाई की मर्दानी छवि आज भी नारी शक्ति का प्रतीक है।
चर्चा अब दूसरी नारी पर यानि ताजमहल की मलिका, शाहजहां की बेगम मुमताज महल की। विश्वप्रसिध्द सबसे खूबसूरत मकबरा तो मुमताज महल की किस्मत में ही लिखा था, जिसे संसार में कोई पार नहीं पाया। जीते जी मुमताज ने यह स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी याद में बना ताजमहल विश्व की अनमोल धरोहरों में से एक होगा। शाहजहां की प्रेमसे लबालब परिकल्पना और मंजे हुए कारीगरों के सिध्दहस्त से निकली कलाकारी ने ताज को जो मशहूरियत दी, उसकी
कोई दूसरी मिसाल अब तक नहीं मिल सकी है। अप्रेल 1593 में मुगल सम्राट जहांगीर की मलिका नूरजहां के भाई अब्दुल हसन असफ खान के यहां जन्मी अर्जुमंद का निकाह शाहजहां से 19 वर्ष की उम्र में हुआ था। अर्जुमंद को शाहजहां ने मुमताज का नाम दिया। वह शाहजहां की तीसरी पत्नी थी, लेकिन खूबसूरत मुमताज मुगल सम्राट की सबसे चहेती बन गई। 17 जून 1631 को बुरहानपुर में बेटी गौहारा बेगम को जन्म देने के बाद मुमताज चल बसी। उसे आगरा में जिस स्थान पर दफनाया गया, उस मजार पर शाहजहां ने संगमरमर से ताजमहल बनवाया। जो आज विश्व प्रसिध्द धरोहर बन चुका है।
शाहजहां के प्रेम का चरम अद्भुत था, जिसकी कल्पना को साकार करने के लिए हजारों हाथी, घोड़े, कारीगर लगाकर वर्षों की मेहनत के बाद एक खूबसूरत ताज बन सका। लेकिन इतिहास में शाहजहां की एक कलंकित करने वाली गलती सदियों तक मानवता के नाम पर लानत बनी रहेगी कि जिन हाथों ने ताज को खूबसूरत शक्ल दी, बादशाह ने उन कारीगरों के हाथ तक कटवा दिए, ताकि कोई दूसरा ताजमहल न बन सके। एक इतिहासकार पी एन ओक ने ‘ताजमहल इज ए आफ हिन्दू टेम्पल पैलेस‘ नामक पुस्तक में 100 से अधिक तर्क दिए हैं कि यहां भगवान शिव का पांचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागेश्वर नाथ विराजित है। हालांकि चर्चा इस विषय से अलग है, इसलिए आगे की बात नारी सशक्तिकरण पर, दुनिया में नारी शक्ति ने समय समय पर अनेक मिसालें कायम की है।
आधुनिक होते भारत में अलग-अलग विधाओं, कलाओं से नारियों ने देश को गौरन्वित किया है, मान बढ़ाया है। लेकिन नारी का प्रतिनिधित्व मुमताज महल और वीरांगना लक्ष्मीबाई ही करती दिखती हैं। लक्ष्मीबाई साहस का, संघर्ष का प्रतीक है और दुनिया के अलग-अलग हिस्से में
साहस के साथ, समाज के बंधनों व मर्यादाओं के बीच, जुल्म सहती, आस्तित्व के लिए जूझ रही नारी किसी न किसी रूप में महारानी लक्ष्मीबाई को आत्मसात करती दिखती है। वहीं दूसरी ओर आधुनिक परिवेश में बदलती संस्कृति के बीच प्रेम की पींगे बढ़ाने वाली युवतियां मुमताज महल जैसी किस्मत पाने को बेचैन दिखती हैं। शाहजहां के प्रेम का अनोखा और खूबसूरत मकबरा ताजमहल देखकर जैसे मन में एक टीस उठती है और हिलारें मारते प्रेम का पावन पाठ पढ़ते हुए अपने प्रेमी से प्रेमिका इठलाती हुई कहती है, तुम मेरे लिए ताजमहल कब बनवाओगे !
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