आए दिन न्यूज चैनलों और अखबारों में खबरें छाई हुई हैं कि स्विस बैंकों में भारतीयों का ही सबसे ज्यादा धन जमा है। योगगुरू बाबा रामदेव ने भी अभियान चला रखा है कि विदेशों में जमा काला धन वापस अपने देश लाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को विदेशों में अपना धन जमा रखने वालों के नाम खुलासा करने को कहा है, लेकिन सरकार भी इन धनकुबेरों के नाम खुलासा करना नहीं चाहती। काले धन के मामले में भारतीय नंबर 1 पर हैं। इस खबर पर कोई शक हमें नहीं है, होना भी नहीं चाहिए, क्योंकि हम चाहे अपने देश के नेताओं को जितना भी कोस लें कि गरीबों का हिस्सा हड़प कर, हक मारकर खुद के लिए तमाम आलीशान ऐशो-आराम के सामान जुटा लेते हैं। अपने देश में एक नंबर या दो नंबर से कमाया हुआ धन स्विस बैंकों में जमा करके आखिरकार विदेशों में देश की साख तो बढ़ा रहे हैं। अमेरिका, जापान, चीन, रूस जैसे देशों को कम से कम हमारे नेता और उद्योगपति किन्ही मामलों में पछाड़ रहे हैं। भारत देश वैसे भी विकासपथ पर लगातार बढ़ रहा है, विकसित देशों को जल्द ही पछाड़ने का दावा भी देश के कई नेता आए दिन करते हुए दिखते हैं। हमारे विकासशील देश को विकसित देशों की श्रेणी में आने में इतना समय नहीं लगता, अगर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझकर काम किया जाता। क्योंकि यह तो बचपन से ही किताबों में पढ़ते आए हैं कि जब देश की तरक्की होगी, तो प्रदेश बढ़ेगा, फिर समाज, शहर, गांव और अंत में परिवार की तरक्की होगी, लेकिन बाकी सब चीजें गौण हो गई, अब रह गया अपना परिवार, अपने बच्चे, अपना घर, गाड़ी, बंगला, शानो-शौकत। देश कहां खो गया, देशप्रेम किधर चला गया ? देश के लिए बात करने हमारे पास सिर्फ दो दिन यानि 15 अगस्त और 26 जनवरी ही रह गए। देश के बारे में सोचते तो हमें नहीं लगता कि अमेरिका, रूस जैसे महाशक्तिशाली देशों का मुकाबला करना कोई मुश्किल होता। राश्ट्रबोध कहीं गुम होकर रह गया और स्वार्थबोध ने मन पर कब्जा कर लिया है। जिस देश में हम रहते हैं, जिस मिट्टी में पलते हैं, जिसका नमक खाते हैं, जिस पर अपनी जिंदगी बिताते हैं, क्या उस देश के प्रति हमारे कोई कर्त्तव्य नहीं। छत्तीसगढ़ की रमन सरकार का रियायती अनाज अगर धनाढ्य या फिर अपात्र लोग किसी तरीके से हड़प कर जा रहे हैं, तो इसमें नुकसान किसका है, बदनामी किसकी है ? देश के अलावा बात करें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की तो ईओडब्ल्यू की छापेमारी में अब तक कई अफसरों की करोड़ों की संपत्ति का खुलासा हो चुका है। क्या संपत्ति सिर्फ अफसरों के पास ही बढ़ गई है ? अगर स्वास्थ्य विभाग, पीएचई, खाद्य, आबकारी, नगरीय निकाय, उद्योग, आयकर, खनिज सहित तमाम सरकारी विभागों के बाबूओं की संपत्ति की छानबीन भी की जाए तो कई लोगों की संपत्ति करोड़ रूपए से कम नहीं निकलेगी। क्लर्क स्तर के कर्मचारियों की संपत्ति इतनी हो सकती है तो अफसरों और नेताओं की संपत्तियों के क्या कहने, पर उसे उजागर कौन करेगा, भ्रष्टाचार की नींव पर खड़े हुए धन के अंबार का खुलासा कौन करेगा ? ईओडब्ल्यू चंद कार्रवाईयां कर अपनी पीठ थपथपा ले या फिर लोग अफसरों के करोड़ों की संपत्तियों का खुलासा देखकर हैरान होते रहें, लेकिन सवाल वहीं खड़ा है कि क्या वाकई कथित काला धन हमारे प्रदेश में कम है या फिर यहां धन की कमी है और वह धन किसके हिस्से का है, किनके हक पर डाका डालकर धन कमाया गया है ? बात भारतीयों के काले धन की हो रही थी और विशय थोड़ा बदल गया। हम तो यही मानते है कि स्विस बैंकों में काला धन जमा होना कहा जाना कहीं से उचित नहीं है। क्योंकि 100 रूपए का नोट 100 रूपए की कीमत का ही होगा, बाजार में वह आधे दाम पर नहीं लिया जाएगा, तो फिर धन काला कैसे हुआ ? ये जरूर हो सकता है कि काले कामों से, भ्रष्टाचार से, दो नंबर से कमाई गई दौलत को काला धन कहा जा रहा है, लेकिन हमारा मानना है कि अपने देश में कमाए गए धन को विदेशों में रखने वालों का मन काला है, नियत में खोट है। काले मन वालों को अपना मन साफ करते हुए धन को देश में ही रखना चाहिए ताकि आड़े वक्त में यह देश के काम आ सके। वरना देश को विकसित बनाने का सपना देखने और दावे करने से क्या फायदा ? शर्म का विशय तो यह भी है कि इतना धन भारतीयों के पास होते हुए भी 61 बरस के स्वंतत्र भारत के हालात भी कुछ खास अच्छे नहीं हो सके हैं। भारत की आत्मा गांवों में बसती है, कहने वाले बापू के सपनों का भारत आखिर कहां है ?
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