कितना औद्योगिकरण जरूरी है ?
उद्योगों की चिमनियों से निकलता काला-सफेद धुआं, सरकारी जमीनों पर कब्जा करती राख, कम होती कृषि भूमि और जनता का विरोध, इन उद्योगों के लगने से देश, प्रदेश, शहर, गांव का विकास होगा, या फिर लोगों के हिस्से में आएगा धूल, धुआं और राख, बढ़ेगा तापमान, तो गर्मी से कैसे निजात पाएंगे लोग, धान का कटोरा बन जाएगा का राख का कटोरा, इसलिए ऐसे औद्योगीकरण के पहले ग्लोबल वार्मिंग पर विचार करना भी जरूरी है। पर्यावरण के सौदागर भूल चुके हैं कि जो हम प्रकृति को देंगे, उसके बदले में हमें भी वैसा फल मिलेगा।
जिले में विद्युत संयंत्र लगाने के लिए सरकार ने उद्योगपतियों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। 34 पावर प्लांट लगाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने देश भर की नामी कंपनियों केएसके महानदी, वीडियोकान, मोजरबेयर, डी. बी. पावर, कर्नाटका पावर, श्याम सेंचुरी आदि से एमओयू हस्ताक्षरित किए हैं। 70 प्रतिशत से अधिक सिंचाई और कृषि प्रधान जिले में इतनी बड़ी संख्या में पावर प्लांट लगाए जाने से होने वाले नुकसान की फिक्र यहां की आम जनता को ही नहीं, जनप्रतिनिधियों को सता रही है। उद्योगों के लिए जमीन अधिग्रहण से जिले की कृषि भूमि का रकबा लगातार कम होता जा रहा है। पावर प्लांट प्रबंधन, जमीन दलालों, अधिकारियों और नेताओं की चौकड़ी की कुटिल रणनीति में फंसकर किसान अपनी दो फसली जमीन बेच रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में उद्योगों के लिए अनुमति दिए जाने के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं, जैसे कि इन उद्योगों के लिए पानी कहां से आएगा, उद्योगों से निकलने वाले धुएं से लोगों के स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ेगा, तापमान बढ़ेगा, भारी वाहनों के आवागमन से दुर्घटनाएं बढ़ेंगी और सबसे अहम् सवाल है कि इन उद्योगों से निकलने वाली राख आखिर कहां जाएगी ?
जिले की तस्वीर भले ही औद्योगिक विकास से सुधर जाए लेकिन तकदीर आने वाले दिनों में बिलकुल भी अच्छी नहीं होगी। 70 प्रतिशत से अधिक खेती के लिए सिंचित जांजगीर-चांपा जिले के लिए सरकार ने 34 से अधिक पावर प्लांट के लिए एमओयू किया है। जिसके बाद आम जनता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। जनसुनवाई में उद्योगों के खिलाफ जनता का आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। आम जनता के अलावा जनप्रतिनिधि भी सरकार के इस कदम से खुश नहीं हैं। लेकिन वे सरकार का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं।
सरकारी जमीनों पर उद्योगों से निकलती राख फेंकी जा रही है, उद्योग प्रबंधनों की मनमानी इतनी बढ़ गई है कि बिना अनुमति लिए ही नेशनल हाईवे के किनारे, नालों में और सरकारी भूमि पर राख फेंकी जा रही है। इस मामले में प्रशासन तो जैसे उद्योगों की हाथों की कठपुतली बन गया है। जिस तरह जांजगीर-चांपा जिले में पावर प्लांट लगाए जा रहे हैं, वह उचित नहीं है, आने वाले दिनों में इससे कई तरह के नुकसान होंगे, लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, उद्योगों में नौकरी नहीं मिलने पर पलायन होगा और कृषि भूमि भी कम होती जाएगी। सबसे बड़ी समस्या होगी तापमान की, प्रदेश में सबसे ज्यादा तापमान इसी जिले मंे होता है, उद्योग लगने के बाद गर्मी बढ़ेगी तो लोगों का जीना हराम हो जाएगा। कोरबा में उद्योग लगने के पहले वहां का तापमान 5 डिग्री कम था, आज जाकर वहां की स्थिति देख सकते हैं।
जिले में अब तक पांच बड़े उद्योग स्थापित हैं और 7 उद्योगों के लिए जनसुनवाई हो चुकी है। स्थापित हो चुके उद्योगों से आसपास के इलाके के ग्रामीण खासे परेशान हैं, चिमनियों से निकलता काला धुआं लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। ग्रामीणों ने प्रशासन के अधिकारियों के सामने इसकी शिकायत भी की है, लेकिन उद्योगों के हाथों की कठपुतली बन चुके अधिकारी इस मामले पर कोई पहल नहीं करते। प्रदूषण रोकने के लिए उद्योगों में लगाए गए ईएसपी संयंत्र बिजली बिल बचाने के चक्कर में बंद रखे जाते हैं, जिसकी वजह से धुआं आसपास के पंद्रह किलोमीटर क्षेत्र को प्रभावित करता है। उद्योग नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, ग्रीन बेल्ट की स्थापना नहीं की जा रही है, जिससे लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। विधायकों द्वारा विधानसभा में भी यह मुद्दा उठाया गया है। लेकिन सरकार र्प्यावरण और प्रदूषण पर गंभीर नहीं है।
कुल मिलाकर इतने सारे उद्योगों के पक्ष में न तो आम जनता है और न ही अधिकतर जनप्रतिनिधि, फिर भी कृषि प्रधान जिले में इतने अधिक उद्योग लगाए जाने के नुकसान के बारे में सोचा नहीं जा रहा है। उद्योगों के बढ़़ने से जिले का विकास तो होगा, लेकिन इनसे निकलने वाली राख, धूल, धुआं और गर्मी आम जनता के हिस्से में ही आएगा, आने वाले दिनों में धान का कटोरा कहलाने वाला यह जिला और प्रदेश राख के कटोरे में तब्दील हो जाएगा। यह समझने की जरूरत है कि ऐसे औद्योगिकरण से जिले का विकास होगा या विनाश ? ग्लोबल वार्मिंग को लेकर पूरे विश्व में चिंता की जा रही है। लेकिन औद्योगिक प्रदूषण पर सरकारें लगाम नहीं लगा पा रही हैं। प्रकृति को दिए जा रहे जख्मों का बदला समय समय पर मानव समाज को मिल रहा है। जापान में हुई तबाही इसका ज्वलंत उदाहरण है। प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले भविष्य में क्या इसके विध्वंस से जनजीवन को बचा पाएंगे ? सिकंदर जब इस दुनिया से गया था तो उसके दोनों हाथ कफन के बाहर निकाले गए थे ताकि दुनिया को सबक मिल सके कि जो दुनिया से जाता है वह अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता। इस पाठ को वे लोग भूल चुके हैं, जिन्हें हर काम में लक्ष्मी प्राप्ति अहम् लगती है। क्या ऐसे लोग अपने साथ कफन में छुपाकर कुछ ले जा पाएंगे ?
0 बुजुर्ग ग्रामीण ने मुख्यमंत्री से कहा
बहुत पुरानी कहावत है कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे यानि दूसरों को उपदेश देने वाले बहुत मिल जाएंगे। उपदेश देना बहुत आसान है, खुद उन बातों पर अमल करना उतना ही मुश्किल। कलयुग में पाप बढ़े हैं, अत्याचार बढ़े हैं, मानवीयता रोज तिल-तिल कर मरती जा रही है। तो लोगों के मन में आध्यात्मिकता भी जमकर हिलोरें मार रही हैं। लगता है कि सतयुग, तेत्रायुग, द्वापरयुग और कलयुग में से, सबसे ज्यादा आध्यात्मिकता कलयुग में ही हो सकती है। हर रोज नया बाबा, नया प्रवचनकर्ता चैनलों पर दिखने लगे हैं। अहम् बात तो यह है कि तरह तरह के उलजलूल हरकतों, रहन-सहन से मानव जाति ने अपने लिए नई-नई मुश्किलें खड़ी की हैं। अब उनसे उबरने के लिए सबसे सस्ता और सरल तरीका उन्हें यही नजर आता है कि सीधे किसी बाबा की शरण में जाओ। कहा जाता है कि बिना गुरू के, भगवान नहीं मिलते, क्योंकि भगवान तक पहुंचने का ज्ञान और मार्ग गुरू ही बता सकते हैं। लेकिन गुरूओं को लेकर भी कई तरह के भ्रम की स्थिति है। देश में चल रहे एक बड़े पंथ के बाबा कहते हैं कि मांसाहार मत करो, यह राक्षसी प्रवृत्ति है। वहीं उसके समकक्ष चल रहे दूसरे पंथ के बाबा कहते हैं कि जो मन में आए वही करो, यदि मांसाहार करने की इच्छा है तो करो, इसमें कोई बुराई नहीं। बाबाओं के भक्त ऐसे मामले पर अलग-अलग तर्क देते हैं। पानी पियो छान के, गुरू बनाओ जान के जैसी बातें अब दरकिनार होने लगी हैं। लोग एक दूसरे के झांसे में आकर बिना किसी परख के बाबाओं को अपना हितचिंतक, दुख दर्द दूर करने और मुक्ति दिलाने वाला मानने लगे हैं। मुझे भी कई रिश्तेदारों ने तरह-तरह के तर्क देकर किसी गुरू, किसी बाबा का भक्त बनने के लिए कई खूबियां गिनाई। उन्हें चमत्कारी पुरूष बताया। सन् 2005 में दिल्ली में मैंने खुद अंधभक्ति की मिसाल देखी। एक विशाल प्रवचन शिविर में तीन दिनों तक रहा और कई प्रपंच देखे। बाबा की भक्त एक महिला, जो सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी। वह सुबह सुबह ही शिविर में आसपास मौजूद भक्तों को मिठाई बांट रही थी और काफी खुश थी। मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया कि क्या बात है किस बात की मिठाई बांटी जा रही है। महिला ने बताया कि उसका प्रमोशन हो गया है, अब वह प्रिसीपल बन गई है और यह सब बाबा का चमत्कार है। मैंने बातों ही बातों में उसकी बेटी से कुछ और जानकारियां ली, तो पता चला कि पिछले डेढ़ वर्ष से महिला के प्रमोशन की प्रक्रिया चल रही थी और इसी के तहत् उन्हें स्कूल का प्राचार्य बनाया गया है। भला बताईए, इसमें बाबा ने क्या चमत्कार किया, जो सरकारी प्रक्रिया थी उसी के कारण प्रमोशन हुआ, लेकिन अंधभक्ति या अंधविश्वास के चलते महिला को सबकुछ बाबा का किया धरा दिख रहा था।
आजकल छत्तीसगढ़ प्रदेश में एक बौध्द भंते बुध्द प्रकाश घूम-घूमकर अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं और चमत्कार, जादू के सच से परिचित करा रहे हैं। उनका कहना है कि अशिक्षितों की बात तो दूर है, देश का एक बड़ा शिक्षित वर्ग ही अंधविश्वास की चपेट में है। सबसे पहले उन्हें जगाना होगा।
कालेधन की बात करें तो यह 100 फीसदी सच है कि मठों में, धर्मादा ट्रस्टों में, किसी धर्म-कर्म वाले संस्थानों में जो भी धन आता है, क्या वो मेहनत से, ईमानदारी से, बिना किसी छलकपट के कमाया गया धन होता है ? एक और बात सामने आती रही है कि कई पूंजीपति अपना धन कथित कालाधन धार्मिक संस्थानों में लगाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यही दिखता है कि धार्मिक संस्थानों के प्रति लोगों के मन में एक श्रध्दाभाव होता है, जिसे पहली बार में शक की नजर से नहीं देखा जा सकता। ऐसे में उन पूंजीपतियों के कथित कालेधन की रक्षा हो जाती है। उस धन को अन्य धंधों में भी लगाया जा सकता है। एक सच यह भी है कि देश में जितने भी बाबा नामी हैं, प्रसिध्द हैं, शोहरत वाले हैं, कम से कम मैंने उन्हें किसी गरीब की कुटिया में जाकर भोजन करते नहीं देखा, सुना और पढ़ा है। यानि जो धन देगा, वहीं बाबाओं का कृपापात्र होगा। अमीरों और गरीबों के लिए बाबाओं का अलग-अलग मापदंड एक बड़ा भेदभाव नहीं है ? सोचा जा सकता है कि क्या इस तरह के भेदभाव से कोई गुरू, किसी भक्त को भगवान से मिलवा सकता है ? ईश्वर ने तो गरीब रैदास, तुलसी, वाल्मिकी, मीरा और सूरदास को उनकी संपत्ति, धन धान्य और हैसियत देखकर दर्शन नहीं दिए थे। फिर परमपिता परमेश्वर तक पहुंचाने का दावा करने वाले बाबाओं को ऐसी दरकार क्यों ? लोगों को उपदेश देकर व्यवहार सुधारने, लोभ, मोहमाया से दूर रहने, अत्याचार, भेदभाव नहीं करने की सीख देने वाले बाबा क्या खुद इन चीजों से दूर हैं ? शास्त्रों में तो यही लिखा है कि भगवान का सच्चे मन से, निर्मल भाव से, छलकपट से दूर रहकर ध्यान करो तो एक दिन वे जरूर मिलेंगे। आत्मा में परमात्मा है, यह सोचकर ही कोई कार्य करें तो व्यर्थ के प्रपंच से बच सकते हैं, बाकी सब तो कलयुगी करामातें हैं।
सूनी सड़क पर सुबह-सुबह एक काफिला सा चला आ रहा था, आगे-आगे कुछ लोग अर्थी लिए हुए तेज कदमों से चल रहे थे। राम नाम सत्य है के नारे बुलंद हो रहे थे। शहर में ये कौन भला मानुष स्वर्गधाम की यात्रा को निकल गया, पूछने पर कुछ पता नहीं चला। मैने एक परिचित को रोका, लेकिन वह भी रूका नहीं। मैं हैरान हो गया, हर चीज में खबर ढूंढने की आदत जो है, तो मैने अपने शहर के ही एक खबरीलाल को मोबाईल से काल करके पूछा। उसने कहा घर पर हूं, यहीं आ जाओ फिर आराम से बताउंगा। मेरी दिलचस्पी और भी बढ़ती जा रही थी। आखिर शहर के भले मानुषों को हो क्या गया है जो एकबारगी मुझे बताने को तैयार नहीं कि धल्ले आवे नानका, सद्दे उठी जाए कार्यक्रम आखिर किसका हो गया था। फिर भी जिज्ञासावश मैं खबरीलाल के घर पहुंच गया। बदन पर लुंगी, बनियान ताने हुए खबरीलाल ने मुझे बिठाया और अपनी इकलौती पत्नी को चाय-पानी भेजने का आर्डर दे दिया। मैंने कहा, अरे यार, कुछ बताओ भी तो सही, तुम इतनी देर लगा रहे हो और मैं चिंता में पड़ा हुआ हूं कि कौन बंदा यह जगमगाती, लहलहाती, इठलाती दुनिया छोड़ गया। खबरीलाल ने कहा थोड़ा सब्र कर भाई, जल्दी किस बात की है।
मैंने कहा, मुर्गे की किस्मत में कटना तो लिखा ही होता है। अब इसमें बेचारे घोटालेबाजों का क्या दोष।
खबरीलाल ने फिर से अपना ज्ञान बघारते हुए कहा, तुम समझ नहीं रहे हो। अरे भाई, मुर्गे को पालने वाली मालकिन के बारे में तुम्हें पता नहीं है। उसने इस कलगी वाले मजबूर मुर्गे को क्यों पाला ? यह मुर्गा लड़ाकू मुर्गों जैसा नहीं है। यह तो बिलकुल सीधा-सादा है, इसने अब तक घर के बाहर दूर-दूर क्या, आसपास की गंदगी पर फैला भ्रष्टाचार का दाना भी कभी नहीं चुगा। मालकिन कहती है कि बैठ जा, तो बैठ जाता है, फिर कहती है कि खड़े हो जा, तो खड़े हो जाता है। बेचारा जगमगाती दुनिया में हो रहे तरह-तरह के करम-कुकर्म से दूर है। लेकिन क्या करें, मालकिन के पड़ोसियों की नजर इस पर कई दिनों से गड़ गई है। इसलिए बिना कोई अगड़म-बगड़म की परवाह किए इसे निपटाने के लिए प्रपंच रचते रहते हैं। इतना स्वामीभक्त है कि एक बार इसके साथी मुर्गे ने पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है, तो पता है इसने क्या कहा। इसने कहा कि मेरा नाम तो सुंदरलाल है, फिर भी मालकिन से पूछ कर बताउंगा, बताओ भला, कोई और होता तो इतना आज्ञाकारी होता क्या ? अब ऐसे मुर्गे को भाई लोग बलि चढ़ा देना चाहते हैं।
मैंने झल्लाते हुए कहा कि अरे यार, मैं उस अर्थी के बारे में पूछने आया था और तुमने मुर्गा, मालकिन, घोटाला की कहानी शुरू कर दी।
उसने हाथ उठाकर किसी दार्शनिक की तरह कहा, अरे शांत हो जा भाई, यह सब उसी अर्थी से जुड़ी कहानी का हिस्सा है। असल में गांव, शहर, महानगर के भले लोग, रोज-रोज घोटालों से तंग आ चुके हैं। अब घोटाले हैं कि थमने का नाम नहीं ले रहे, तो भलेमानुषों ने सोचा कि जब घोटाला, भ्रष्टाचार करने वाले इतनी दीदादिलेरी से इतरा रहे हैं, खुलेआम घूम रहे हैं, निडर हैं, बेधड़क हैं, शान से मूंछें ऐंठ रहे हैं, तो हम क्यों स्वाभिमानी, ईमानदार, सदाचारी, देशप्रेमी बने रहें। इसीलिए अपना यह सुघ्घड़ सा चोला उतारकर उसकी अर्थी निकाल दी है और उसे फंूकने के लिए शमशान घाट गए हैं। शाम को श्रध्दांजली सभा भी है, तुम चलोगे ?
मैंने खबरीलाल को दोनों हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर कहा कि धन्य हो श्रीमान, आप और आपका ज्ञान दोनों ही सत्य है।
खबरीलाल ने कहा, याद रखो मित्र कि जीवन का अंतिम सच, राम नाम सत्य ही है। जाने कब, इस सीधे-सादे, कलगीवाले, आज्ञाकारी मुर्गे का भी राम नाम सत्य हो जाए ?