देश के जाने माने योगगुरू बाबा रामदेव अब राजनीतिक पारी खेलने की तैयारी में हैं। योग की घुट्टी पिलाकर रोग भगाने के बाद अब वे राजनीति की खुराक देंगे। तमाम लोग भी चाहते हैं कि राजनीति में बढ़ती जा रही गंदगी पर रोक लगे या फिर उसका सफाया ही हो जाए। लेकिन क्या बाबा रामदेव की मंशा को पंख लग पाएंगे ?आए दिन नई बीमारी, नए रोग और उसके निदान के लिए जूझते देश-विदेश के हजारों वैज्ञानिक, डाक्टर। ऐसे में बाबा रामदेव ने प्राचीन युग से चल रहे योग को लोगों के सामने पेश किया, जिसका नतीजा भी लोगों को देखने को मिला, लाखों लोगों ने योग अपनाया, प्राणायम, अनुलोम-विलोम किया, स्वस्थ भी हुए और देश-विदेश में बाबा रामदेव योगगुरू के रूप में छा गए। पतंजलि योगपीठ नाम की संस्था बनाकर अब देश भर में उन्होंने योग डाक्टर भी नियुक्त किए हैं और योग की क्लिनिक में लोग अपना रोग भगाने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। यहां तक तो ठीक था, लेकिन राजनीति में आने का इरादा कुछ अटपटा सा है क्योंकि राजनीति का इतिहास देखा जाए तो इसका कालापन सदियों से बरकरार है। राजा-रजवाड़ों के दौर में सत्ता की कुर्सी हथियाने के लिए खूनी संघर्ष, धोखेबाजी, युध्द, गद्दारी और तमाम तरह के प्रपंच चलते रहे हैं। आजाद भारत में शुरूआती दौर की राजनीति भी कोई साफ सुथरी नहीं रही, यह हमने कई बार सुना हुआ है कि स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में अधिकतर नेता लौहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री बनाने के हिमायती थे, लेकिन महात्मा गांधी जिद पर अड़े रहे कि प्रधानमंत्री तो नेहरू जी ही बनेंगे। आखिरकार पंडित नेहरू ही प्रधानमंत्री बने। कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि अगर राजनीति को बाबा रामदेव आसान समझ रहे हैं तो यह शायद उनकी भूल होगी। क्योंकि राजनीति में सफलता के लिए क्या-क्या करना पड़ता है, लोग अब समझने लगे हैं। देश के राजनीतिज्ञों पर यह आरोप तो लगते रहे हैं कि चुनाव में करोड़ों रूपए देकर वोट खरीदे गए, इसलिए कुर्सी तक पहुंचे। लेकिन इसमें दोष सिर्फ उस नेता का ही है जो नोट देकर वोट खरीदते हैं, जनता इसमें शामिल नहीं ? देश की गरीब आबादी, रोजगार की समस्या से जूझते लोगों का चुनाव में नोट मिलते वक्त ईमान नहीं जागता कि अगर नोट लेकर वोट देंगे, तो इसका परिणाम भी हम ही भुगतेंगे ? इसके पीछे कुछ मजबूरियां हो सकती हैं या फिर स्वार्थ, जैसे कि यह दोबारा कब आएगा, इससे अच्छा है नोट ले लो, यही मौका है, जो दे रहा है, ले लो, चुनाव जीत गया तो फिर कुछ मिले न मिले। लेकिन चुनाव में सिर्फ गरीब-गुरबे भी नहीं मध्यम वर्गीय, अमीरों के भी अपने-अपने स्वार्थ होते हैं। मसलन चुनाव जीतने के बाद कहीं नौकरी मिलने की आस, रोजगार मिलने का लालच, तो कहीं करोड़ों रूपए के ठेके मिलने की चाहत होती है। कुल मिलाकर राजनीति का रंग अब भी स्याह ही है, न कि रंगबिरंगा, जिसे देखकर, महसूस करके किसी आम आदमी का मन खिल सके, आनंद महसूस कर सके। बाबा रामदेव ने अगर यह ठाना है कि वे राजनीति में आएंगे, तो इसके परिणामों को लेकर उन लोगों की उम्मीदें जाग गई हैं जो देश में अच्छी और साफ-सुथरी राजनीति के सपने देखते हैं, अपने प्रतिनिधियों को ईमानदार और जुझारू देखना पसंद करते हैं। लेकिन योग भगाए रोग की तर्ज पर राजनीति की घुट्टी आम जनता को पिलाना आसान न होगा, क्योंकि राजनीति, मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज है। योग और अनुलोम-विलोम करके लोग अपनी सांसों तथा मन पर नियंत्रण तो पा सकते हैं, कुछ बीमारियां भी दूर भगा सकते हैं। पर राजनीति के अनुलोम-विलोम से दागदार और भ्रष्टाचारी नेताओं को, किसी रोग की तरह बाहर का रास्ता दिखाना इतना भी आसान नहीं होगा। बाबा रामदेव की राजनीतिक पारी की सफलता के लिए सिर्फ ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले नेता, कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि अपने स्वार्थों से परे, ईमानदार मन वाली, ईमानदार जनता भी चाहिए। क्यांेकि जनता के वोट ही प्रतिनिधि तय करते हैं, क्या ऐसा होना संभव है ?


राखी के इंसाफ ने ली एक जान !
आखिर वह हो ही गया, जिसकी कुछ-कुछ कल्पना हमने की थी। दो दिन पहले ही हमने एनडीटीवी इमेजिन पर दिखाए जा रहे शो राखी का इंसाफ पर लिखा था, राखी का इंसाफ या कानून का मजाक। जैसा कि अनुमान था कि इस तरह इंसाफ से किसी न किसी को खासा नुकसान होना ही था, वह हो गया। बुंदेलखंड के झांसी क्षेत्र के राजगढ़ से इंसाफ मांगने आए शख्स लक्ष्मण को शो पर जितनी बेईज्जती मिली, उसने जिंदा रहने की बजाय मौत को गले लगाना ही उचित समझा। पारिवारिक विवादों तथा ससुराल पक्ष से चल रहे झगड़े को उसने टीवी शो के माध्यम से सुलझाने की चाह में हिस्सा ले लिया और राखी ने उसे कह दिया नामर्द। शो में आए लोगों के अलावा टीवी पर कार्यक्रम देख रहे लोगों के बीच इस तरह का अपमान वह सहन नहीं कर सका। क्या राखी के पास कोई ऐसा पैमाना था कि वह लक्ष्मण की मर्दानगी की जांच कर पाती, या फिर लोगों के बीच अपना बड़बोलापन साबित करने के लिए कुछ भी कहने की उसे छूट है ? लक्ष्मण इतना अपमान बर्दाश्त करने के बावजूद न तो राखी का कुछ बिगाड़ सकता था न ही उसे कोई इंसाफ मिला, जैसी उम्मीद उसने शो में आने से पहले की थी। अपमान का दंश वह कितने दिनों तक सहता लिहाजा उसने अपनी जान ही दे दी। शो पर आए लोगों का अपमान, महिला अधिकारों का हनन, पुरूषों को उटपटांग करने की उसे इतनी छूट मिली हुई है कि वह गंदे शब्दों का इस्तेमाल करके किसी की भी बेईज्जती कर सकती है ?लक्ष्मण तो इस दुनिया से चला गया, पर इंसाफ जैसे पवित्र शब्द के साथ खिलवाड़ करने वाले एनडीटीवी इमेजिन, शो के निर्माता, राखी सावंत सहित जिम्मेदार लोगों पर कोई कड़ी कार्रवाई होगी ? क्या देश की अदालतें इस तरह इंसाफ के नाम पर उड़ाए जा रहे कानून के मजाक पर संज्ञान लेते हुए इस शो से संबंधित लोगों को लक्ष्मण की मौत का जिम्मेदार मानेगी ? या फिर लक्ष्मण की मौत के किस्से को लोग कुछ दिन बाद भूल जाएंगे, और राखी की ऐसी अश्लील लफ्फाजी पर तालियां पीटेंगे ? इससे बड़े शर्म की बात क्या हो सकती है कि ऐसी महाविवादित, मर्यादा को ताक में रखने वाली, सामान्य बातचीत में भी भद्दे लफ्जों का इस्तेमाल करने वाली राखी सावंत एक मशहूर सेलिब्रिटी और आयटम गर्ल मानी जाती है और लोग उसकी घटिया लफ्फाजी को सुनकर मजे करते हैं और तालियां बजाते हैं। शर्म, शर्म और बेहद शर्मनाक........कैसा है यह राखी का इंसाफ, जिसने लक्ष्मण के साथ इंसाफ की बजाय बेइंसाफी कर दी .


एनडीटीवी इमेजिन पर इन दिनों महाविवादित, महा हौसलामंद सेलिब्रिटी राखी सावंत लोगों का इंसाफ करने में जुटी हुई हैं। आप पूरा प्रोग्राम देखकर बताएं कि इसमें राखी इंसाफ करती हुई दिखती है या फिर खुलेआम अश्लीलता का पाठ पढ़ती हुई गंदी टिप्पणी करती है। 7 नवंबर की रात दिखाए जा रहे एपिसोड मंे तो अश्लीलता की सारी हदें पार ही कर दी गई। कास्टिंग काउच का भंडाफोड करने का स्वांग रचकर स्त्री और पुरूष जाति को भद्दे-भद्दे अलफाजों से नवाजा गया, शो पर इंसाफ मांगने आई माडल रितु और कास्टिंग डायरेक्टर वंश पाठक ने एक दूसरे से मारपीट की, एक और माडल ने वंश पाठक पर अपनी सैंडिलें भी फेंकी, जिसके जवाब में वंश ने भी उससे पीटने की कोशिश की। क्या इस तरह किसी शो में हिंसा दिखाना अपराध नहीं ? शो के दौरान राखी सावंत ने यह टिप्पणी भी की, कि ये लड़के महिलाओं को अपने बाप का माल समझते हैं क्या ? मंच पर मौजूद एक शख्स को उसने कह दिया कि तू फट्टू है। यह सब देखकर भी लोग चुप हैं या मजे ले रहे हैं। इस कार्यक्रम में पुरूषों को ही नहीं, महिलाओं को भी अपमानित किया जा रहा है। जब राखी जैसे लोग इंसाफ के नाम पर यह सब करेंगे तो जाहिर है कि वह इंसाफ नहीं कानून का मजाक भी है और इंसाफ जैसे पवित्र काम करने का हक आखिर उसे किसने दे दिया, यह एक बड़ा सवाल है। इसके पहले भी मशहूर आईपीएस अधिकारी रहीं किरन बेदी स्टार प्लस पर आपकी कचहरी के नाम से लोगों के परिवारों की समस्याएं सुलझाने में लगी हुई थीं, उस कार्यक्रम में एक मर्यादा झलकती थी, लोग भद्दे लफ्जों का इस्तेमाल नहीं कर पाते थे। लेकिन राखी के ऐसे इंसाफ ने तो इंसाफ जैसे पवित्र लफ्ज के मुंह पर तमाचा ही मारा है। इतनी घटिया हरकतें टीवी चैनल पर देखने के बाद तो यही लगता है कि देश का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय कुंभकरण की तरह सो रहा है। जिसे जगाने के लिए बड़े-बड़े ढोल-नगाड़ों, छप्पन भोग, पूरी-पकवानों और 5 डेसीबल से अधिक आवाज वाले पटाखों की जरूरत है, फिर भी यह कुंभकरण जाग जाएगा, इसमें संदेह है।

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दैनिक छत्‍तीसगढ में ब्‍यूरो चीफ जिला जांजगीर-चांपा
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