मय से मयकदा से, इश्‍क इक अदा से
जिंदगी है आज मेरी, तेरी ही सदा से
मय से मयकदा से........
सुर्ख सुर्ख आंखों में अश्‍क थे भरे
मेरी ये दिले हालत क्‍या बयां करें
अलविदा करके तुझे हो गए जुदा से
मय से मयकदा से्....
तू नहीं तो ऐ दिलबर, जाम साथ है
फानी दुनिया में जीना अपने हाथ है
अब शिकवा किससे करें, खुद से या खुदा से
मय से मयकदा से.....

केन्‍द्र में सत्‍तारुढ यूपीए नीत गठबंधन की कांग्रेस सरकार अल्‍पमत में आने की स्थिति में है। खिचडी सरकारों का कामकाज वैसे भी सहयोगी दलों के दबाव में चलता है, और कई मुददों पर सत्‍तासीन सरकार को शर्मनाक स्थिति से गुजरना पडता है। आम जनता की हितों के मुददों को राजनीतिक दबाव के चलते रोक दिया जाता है। केन्‍द्र सरकार का कार्यकाल अब अंतिम बरस में है और हर बार कुछ मुददों को लेकर सरकार के खिलाफ आंखे तरेरने वाले वाम मोर्चा का आक्रोश नूरा कुश्‍ती ही साबित होता आया है। कई बार तो वाम दलों का यह खोखला विरोध देखकर लगता है कि उनकी सिर्फ आंखे ही लाल दिखती है और खून में सफेदी आने लगी है,वरना बार बार विरोध करने के बाद किन कारणों के चलते कांग्रेस को समर्थन देकर रखा है। केन्‍द्र सरकार का कार्यकाल पूरा होते देखते हुए वाम मोर्चा अब उंगली कटाकर खुद को शहीद बताने की तैयारी में है। केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों के गठबंधन के मुददे पर समर्थन देना और वापस लेना मेरे हिसाब से पूरी तरह भारतीय लोकतंत्र का मखौल उडाने के समान है। सरकार को जनहित के बजाय खुद के स्‍वार्थों के चलते समर्थन देकर सहयोगी दल खडा रखते हैं और समर्थन वाली सरकार की आड में पार्टी के चेले चप्‍पूओं को लाभ दिलाने का खेल चलता रहता है। भारत में लोकतंत्र के प्रभाव को और मजबूत करने संविधान में बहुत से संशोधन किए जाने की जरुरत है और खिचडी सरकारों के कामकाज से वैसे भी संतुष्टि तो सिर्फ लाभ मिलने वालों और संबंधित पार्टियों के लोगों को होती दिखती है। भारतीय भोजन में खिचडी को सादा और फायदेमंद माना जाता है पर यह खिचडी किसी के लिए घर में तभी बनती है जब कोई बीमार हो या उसे अनाप शनाप खाने पर रोक हो। ऐसी ही खिचडी सरकार बीमार सोच की सरकार बन जाती है। देश में सरकार तो ऐसी हो कि कम से कम जनहित के लिए लागू होने वाले संविधान को पास करने के लिए अतिरिक्‍त समर्थन की जरूरत न पडे। यह तो विडंबना है कि सत्‍ता की कुर्सी पर काबिज होने के लिए तमाम काबिल ना‍काबिल समझौते कर लिए जाते हैं। पिछले चार बरस से केन्‍द्र सरकार वाम मोर्चा को और वाम दल कांग्रेस सरकार को झेलते आ रहे हैं आखिर किसलिए, जनता के हितों के लिए या खुद कुर्सी पर बैठने के लिए। बहरहाल देश भर में वाम दलों की समर्थन वापसी पर सबकी निगाहें हैं और विपक्षी दलों को भी सरकार गिरने का इंतजार है। पर बात बात पर आंखे लाल करने वाले वामपंथी इस तरह से न तो जनता का भला कर सकेंगे और न ही खुद का, सफेद होते खून को अब हीमोग्‍लोवीन की जरुरत है और खून में लाली बनाए रखने के लिए अपनी नीतियों पर मजबूती से कायम रहने की जरूरत है।

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दैनिक छत्‍तीसगढ में ब्‍यूरो चीफ जिला जांजगीर-चांपा
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